पेशावर विद्रोह की 95वीं जयंती पर याद किए गए चंद्र सिंह गढ़वाली

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समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड 

रामनगर के राजकीय इंटर कालेज ढेला में आज बुधवार को चंद्र सिंह गढ़वाली और पेशावर विद्रोह के सिपाहियों को विद्रोह की 95 वीं जयंती पर याद किया गया। कार्यक्रम के तहत बच्चों ने चंद्र सिंह गढ़वाली का चित्र बनाया और उस समय की घटना पर डॉक्यूमेंट्री देखी। उस विद्रोह पर बातचीत रखते हुए अंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने बच्चों को बताया गया कि 23 अप्रैल 1930 में चंद्र सिंह गढ़वाली एवं उनकी बटालियन ने पेशावर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहे निहत्थे पख्तूनों पर गोली चलाने से मना कर विद्रोह कर दिया।इस घटना ने अंग्रेजों को इस कदर हिला कर रख दिया कि इन सिपाहियों पर जब कार्यवाही करने की नौबत आई तो अंग्रेजी ने 23 अप्रैल को आदेश नहीं मानने का मुकदमा उन पर नहीं चलाया बल्कि 24 अप्रैल को हुक्म उदूली का मुकदमा चला कर इनका कोर्ट मार्शल किया। भारत के स्वाधीनता आंदोलन का एक गौरवशाली अध्याय है,जहां बेहद कम पढ़े-लिखे साधरण सिपाहियों ने अंग्रेजों की फूट डालो-राज करो की नीति को पलीता लगा दिया.गढ़वाली फौज को पेशावर में उतारा ही इसलिए गया था ताकि इसे हिन्दू-मुसलमान का मामला बनाया जा सके। पेशावर में गोली चलाने की भूमिका बनाते हुए, अंग्रेज अफसर ने इन सिपाहियों को हिन्दू-मुसलमान के झगड़े की बात ही समझाने चाही. चन्द्र सिंह गढ़वाली सिंह ने अपने साथियों को समझाया -”इसने जो बातें कही हैं सब झूठ हैं.हिंदू-मुसलमान के झगड़े में रत्ती भर सच्चाई नहीं है. न ये हिंदुओं का झगड़ा है न मुसलमानों का.झगड़ा है कांग्रेस और अंग्रेज का.जो कांग्रेसी भाई हमारे देश की आजादी के लिये अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहे हैं, क्या ऐसे समय में हमें उनके ऊपर गोली चलानी चाहिये? हमारे लिये गोली चलाने से अच्छा यही होगा कि अपने को गोली मार लें.”
आजाद भारत में चंद्र सिंह गढ़वाली जी द्वारा किए गए जन संघर्षों के बाबत भी बच्चों को बताया गया। इस मौके पर कला शिक्षक प्रदीप शर्मा के दिशा निर्देशन में जूनियर कक्षा के बच्चों ने चंद्र सिंह गढ़वाली का चित्र बनाया और सीनियर बच्चों द्वारा पेशावर विद्रोह पर एक डॉक्यूमेंट्री भी देखी गई।कार्यक्रम के अंत में पहलगाम में मारे गए निर्दोष नागरिकों को श्रद्धांजली अर्पित की गई। इस मौके पर प्रधानाचार्य मनोज जोशी, सीपी खाती, हरीश कुमार, शैलेंद्र भट्ट, संत सिंह, बालकृष्ण चंद, सुभाष गोला, जया बाफिला, उषा पवार, संजीव कुमार मौजूद रहे।

 

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